जय श्री कृष्ण
कृष्ण जन्माष्टमी के इस पावन अवसर पर जहां हर ओर कृष्ण भक्ति में लीन लोग श्री कृष्ण की महिमा का बखान कर रहे हैं “shayari by नीलश” भी इस पावन बेला पर कृष्ण भक्ति का एक भक्तिमय पोस्ट अपने प्रिय पाठकों के लिए लेकर आया है आशा है हमारी ये पोस्ट भी हर पोस्ट की तरह ही आपको पसंद आएगी,ये “shayari by नीलश” का अब तक का पहला ऐसा लेख है जो हमारे श्री कृष्ण (लड्डू गोपाल ) को समर्पित है।आप भी इसे पढ़ें यदि पसंद आये तो share अवश्य करें,आइये हम सभी श्री कृष्ण की भक्ति में लीन होकर श्री कृष्ण का स्मरण करें। जय श्री कृष्ण 🙏🏻😊
श्री कृष्ण जन्म
भाद्रपद कृष्ण अष्टमी तिथि की घनघोर अंधेरी आधी रात को रोहिणी नक्षत्र में मथुरा के कारागार में वसुदेव जी की पत्नी देवकी के गर्भ से भगवान श्रीकृष्ण ने जन्म लिया था। यह तिथि उसी शुभ घड़ी की याद दिलाती है और सारे देश में बड़ी धूमधाम से जन्माष्टमी ( janmashtami ) के रूप में मनाई जाती है।
गोकुल की ओर
जब वसुदेव जी अबोध श्री कृष्ण को अपने मित्र नंदजी के घर गोकुल ले जाने लगे तो पहरेदार गहरी निद्रा में सो गए ,कारागार के फाटक स्वतः खुल गए और उफनती हुई आथाह युमना माता ने उन्हें जाने का मार्ग दिया।
कारगार के द्वार स्वयं खुल गए एकाएक।।
अथाह उफनती माँ यमुना,करो वेग हो शांत।
बाल कृष्ण जा रहे अपने कर्मस्थान।।
श्री कृष्ण बाल विवरण
यहां पर श्री कृष्ण का बाल विवरण देना आवश्यक है क्योंकि उनके बाल्य रूप के विवरण के बिना जन्माष्टमी का पर्व अधूरा है।
श्री कृष्ण की नटखट लीलाएं
वैसे तो बाल गोपाल की बहुत सी लीलायें हैं लेकिन केवल एक लेख में समेटना असम्भव है फिर भी कुछ का उल्लेख यहां किया जाना आवश्यक है।
माखन चोरी पकड़े जाने पर
कान्हा और उनकी माखन चोरी तो ब्राह्मण में प्रसिद्ध है किस तरह वो माखन चोरी करते थे और पकड़े जाने पर यशोदा मईया को किस तरह अपनी मीठी बातों में फंसा लेते थे।
गोपियों के वस्त्र छुपाना
जब श्री हरि ने श्री कृष्ण अवतार लिया तो उन्होंने पूर्णतयः एक बालक का बचपन जिया और उसी तरह एक शैतान नटखट बालक की तरह शैतानियां भी की उन्हीं में से एक है गोपियों के वस्त्र छुपाना। जैसा की माना जाता है विधाता बिना कारण कुछ नहीं करते,उनके हर कार्य के पीछे कोई न कोई कारण अवश्य होता है। ठीक उसी तरह मधुसूदन द्वारा गोपियों के वस्त्रहरण के पीछे भी कारण ही था। यहां हम अपने पाठकों की जानकारी के लिए उस घटना का लघु वृतांत दे रहे हैं। जब गोपियाँ नदी में स्नान करने जातीं तो वे अपने वस्त्र उतराकर नदी के किनारे रख देतीं और निश्चित होकर स्नान करतीं,जब कृष्ण द्वारा उनके वस्त्र छुपाय जाने लगे तो गोपियाँ इसको कृष्णा की शरारत समझतीं और यशोदा माँ से शिकायत करतीं, इसी तरह जब कान्हा द्वारा गोपियों के वस्त्र छुपाय गए तो गोपियों ने गोपाल से विनती की और कहा - इस तरह हमारे वस्त्र छुपाना आपको शोभा नहीं देता मधुसूदन,कृपया हमारे वस्त्र हमें लौटा दें। गोपियों की यह बात सुन श्री कृष्ण बोले - निश्चय ही मेरा तुम्हारे वस्त्र छुपाना अनुचित है किन्तु क्या तुम्हारा इस तरह खुले में निर्वस्त्र स्नान करना उचित है? क्या इस तरह खुले में स्नान करना तुमको शोभा देता है? कृष्ण के ऐसे प्रश्न करने पर गोपियाँ बोलीं - हे मधुसूदन हम जब यहाँ स्नान करती हैं तब यहां कोई नहीं होता। गोपियों की यह बात सुन गोपाल बोले - तुम ये कैसे कह सकती हो कि यहाँ कोई नहीं होता? जब तुम सब यहां निर्वस्त्र हो स्नान करती हो तो सभी तो यहां होते हैँ, ये वृक्ष,पशु,पक्षी,हर जीवित प्राणी तुम्हें स्नान करते देखता है, क्या इनके नेत्र नहीं हैं? केवल मनुष्य ही तो इस पृथ्वी पर जीवित प्राणी नहीं हैं, तुम सब निर्वस्त्र स्नान करते हुए ये कैसे भूल गईं कि विधाता द्वारा रचित इस धरा पर हर जीव जो तुम्हारे स्नान के समय यहां उपस्थित होता है वे सभी तुम्हें देखते हैं क्या इस विचार से ही तुम्हें लज्जा नहीं आती? तुम ये कैसे भूल जाती हो कि ईश्वर हर स्थान पर होते हैं इसीलिए हे गोपियों शास्त्र कहता है कि स्त्रियों को कभी पूर्ण निर्वस्त्र होकर स्नान नहीं करना चाहिए। श्री कृष्णा की बाते सुन गोपियाँ बड़ी लज्जित हुईं और गोपाल से क्षमा याचना करने लगीं,अब गोपियों को यह बोध हो गया था की कृष्ण अठखेली वश उनके वस्त्र नहीं छुपाते थे। बोलो “जय श्री कृष्ण”🙏🏻😊
शैतानियों से बाज़ ना आये।
जाएं जब स्नान को गोपियाँ,
नटखट कान्हा वस्त्र छुपाये।।
लाख करें विनती गोपियाँ लेकिन
कान्हा किसी के हाथ न आये।
ऐसी अनोखा रूप कि श्री हरि
अपनी लीला आप दिखाएं।
कान्हा का मिट्टी खाना
जब एक बार बलराम जी और कुछ बाल गोपालों ने यशोदा मईया से गोपाल की शिकायत की,कि कन्हैया छुप - छुपकर मिट्टी खाता है तो माता यशोदा को कान्हा पर बड़ा क्रोध आया और उन्होंने नन्हे गोपाल को मुख खोलने को कहा, जब कृष्ण ने मुख खोला तो यशोदा मईया पूरी सृष्टि कान्हा के मुख के अंदर देख कर अचंभित रह गईं।
फिर भी तू मिट्टी क्यूँ खाये,
खोल ये मुख ज़रा मैं भी तो देखूं ,
कितने तूने हैं पत्थर छुपाये।
0 Comments