Hindi Story,बस्ता

 

बस्ता

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रूमी और सनी दोनों भाई बहन थे। दोनों अपने मामा के घर रहते थे क्योंकि उनके माता-पिता का स्वर्गवास हो चुका था। मामी उन दोनों ही बच्चो को बिल्कुल पसंद नही करती थी लेकिन पति के कारण उन बच्चों को झेल रही थी पर समय - समय पर उन मासूम बच्चों को प्रताड़ना देती रहती थी।सनी रूमी का बड़ा भाई था और वो अपनी बहन रूमी से बहुत प्यार करता था। मामी रूमी को प्रताड़ित न करे इसके लिए मामी जो कहती सनी चुपचाप कर देता। सनी एक समझदार बच्चा था पढ़ाई के साथ होटल में भी काम करता ताकि मामी को कुच पैसे देकर खुश कर सके पर मामी को खुश न कर पाता, एक दिन सनी शाम को काम से लौटा तो उसने देखा रूमी अपनी किसी सहेली से बात कर रही है, सनी ने सोचा देखूं तो रूमी अपने दोस्तों से क्या बात करती है। रूमी की सहेली ट्यूशन पढ़कर आ रही थी उसके कंधे पर बस्ता था और वो रूमी को कह रही थी - " मेरे पापा आज शाम को मेरे लिए नया बस्ता लाएंगे ," रूमी का मुंह उतर गया वो बोली - " नया बस्ता? लेकिन तुम्हारे पास तो पहले ही ये इतना अच्छा टिक - टिक वाला बस्ता है फिर नया बस्ता क्यूँ?"

 " अरे, मुझे ये बस्ता अब पसन्द नही तो पापा ने बोला कोई बात नही मैं तुम्हें नया इससे भी अच्छा बस्ता ला दूंगा।" गुड़िया ने कुछ इतराते हुए कहा, "अच्छा ," रूमी कुछ उदास आवाज़ में बोली। पास ही खड़ा सनी ये सब सुन रहा था। अचानक रूमी कुछ उत्सुक होकर गुड़िया से बोली - " जब तुम्हारा नया बस्ता आ जायेगा तो तुम मुझे अपना ये टिक - टिक बस्ता दे दोगी? मुझे टिक - टिक वाले बस्ते पसन्द हैं फीते वाले नही ,मेरा बस्ता फट रहा है, तुम इसका फिर क्या करोगी , ये मुझे दे देना।" गुड़िया कुछ अहंकार में बोली - " नही ,तुमको अपना बस्ता क्यूँ दूँ ? तुमको चाहिए तो खुद क्यूँ नही खरीद लेती,भीख मांगते शर्म नही आती?" रूमी बोली - " नही देना तो मत दो , भिखारी क्यूँ बोल रही हो, मैं भिखारी नही हूँ," " आहा ! भीख भी मांगती है और भिखारी भी नही है ऐसा थोड़ी होता है, अब मैं सबको बताऊंगी रूमी भिखारी है।" यह कहकर गुड़िया अपने रास्ते चली गई और रूमी रोने लगी। सनी दौड़कर उसके पास आया "अरे , रूमी क्या हुआ ? रो क्यूँ रही है?" पर रूमी कुछ न बोली और रोती हुई घर की तरफ़ चली गई। सनी ने भी ज्यादा नही पूछा ,वो जनता था कि रूमी बाद में उसे खुद ही सब कुछ बता देगी लेकिन आज एक संकल्प सनी ने भी कर लिया था कि अपनी बहन को उसके जन्मदिन पर टिक - टिक वाला बस्ता जरूर देगा उपहार में। अगली सुबह दोनों भाई बहन स्कूल जा रहे थे कि रास्ते में रूमी ने सनी को कल वाली सारी बात बता दी और मासूमियत से पूछा - "भैया , क्या मैं भिखारी हूँ ?"  "अरे नही रूमी ! ऐसा नही कहते दोस्तों में ऐसे झगड़े हो जाते हैं , तू गुड़िया की बात को दिल पर मत ले,ठीक है ?" रूमी ने हाँ में सिर हिला दिया, अपने सनी भैया की बात को वो कभी नही टालती थी

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सनी था तो 12 ,13 साल का लेकिन समझ में बड़े लोगों को भी पानी पिला देता था। आज उसकी तनख्वाह मिली थी और पांच दिन बाद रूमी का जन्मदिन था सनी सोच रहा था जब रूमी को मैं उसके जन्मदिन पर टिक - टिक वाला बस्ता दूंगा तो रूमी कितना खुश होगी। इसी ख्याल मात्र से उस भाई को आत्मसंतुष्टि हो रही थी जो खेलने की उम्र में जिम्मेदार बन गया था। "कहाँ मर गया ये लड़का?" मामी बुदबुदाई, "तनख्वाह वाले दिन ये हमेशा लेट आता है जरूर मटरगश्ती करता होगा," "सनी भैया!" रूमी ने सनी को देखकर पुकारा। "आ गया कमबख्त" रूमी सनी की तरफ भागी, "आ गए लाट साहब! बड़ी देर करदी,समय देखा है क्या हुआ है ? कितनी चिंता हो जाती है मामी को सोचते नही हो।" मामी अपनी कर्कश आवाज़ को कुछ मद्धम करके बोली। "वो मामी आज मालिक ने हिसाब देर से किया तो इसीलिए.... " चलो छोड़ो अब , जा रूमी भैया के लिए पानी ला, तनख्वाह तो मिल गई ना?" मामी ने सनी से पूछा। "भैया लो पानी,अब मैं खेलने जाऊँ?" रूमी ने सनी से पूछा। "हाँ ,जा" सनी बोला। रूमी खेलने बाहर चली गई तो सनी ने मामी को तनख्वाह देदी और कुछ घबराते हुए बोला - " मामी ! मैंने तनख्वाह से चार सौ रुपए ले लिए हैं ,5 तारीख को रूमी का जन्मदिन है," मामी आंखें लाल करके बोली - " चार सौ रुपये? अरे तुम बावले हो क्या? पता है महंगाई कहाँ जा पहुंची है ? और हम किस तरह अपना कलेजा काट कर तुम दोनों अनाथों को पाल रहे हैं?

"चार सौ रुपये का तोफा देना है या हीरों का हार भेंट करना है बहन को ? माँ की तरह तुम दोनों को पाल रही हूं कभी मामी पे तो ये मेहरबानी नही की बेटा तुमने ? कोई जरूरत नही है ,जितनी चादर हो उतने ही पैर फैलाओ, ये गिफ्ट विफ्ट अंग्रेजों की देन है और अमीरों के चोंचले, न तुम अंग्रेज़ हो न अमीर,लाओ दो बाकी के चार सौ रुपये, ह्म्म्म! जल्दी,"  सनी ने मामी से और बहस करना ठीक नही समझा, वो जनता था नतीजा कुछ नही निकलेगा ,3 साल में एक बार भी 10 रुपये तक तो वो अपनी तनख्वाह के ले नही पाया और ये तो "चार सौ" रुपये हैं, उसने पैसे मामी को दे दिए। सनी ने रुपये तो मामी को दे दिए लेकिन अंदर ही अंदर उसका मन रो रहा था, "वो कितना लाचार भाई है जो अपनी छोटी बहन की एक छोटी सी खुशी उसे खरीदकर नही दे सकता," वो सोच रहा था कि अब बस्ता कैसे खरीदेगा ? वो रूमी के जन्मदिन पर उसे बहुत खुश देखना चाहता है लेकिन "कैसे?" रूमी दिनभर उछल कूद करके थकी हारी सो गई तो सनी छत पर चला गया,आज उसे नींद कहाँ आनेवाली थी। अंधेरे छत पर एक कोने में सनी अपनी और अपनी बहन की ज़िंदगी के बारे में सोच रहा था ,ये काम वो अक्सर अकेले में करता। फिर उसे अचानक याद आया गुड़िया के वो शब्द - "भीख मांगते शर्म नही आती।" "मैं भिखारी नही हूँ।"सनी सिहर उठा, उसे रूमी का वो मासूम सवाल याद आ गया जो उसने सनी से पूछा था - " भैया क्या मैं भिखारी हूँ ?" और यही सवाल शूल की तरह उसके सीने में उतर गया और वो फुट - फुटकर रोने लगा।

तभी उसे किसी का हाथ उसके कंधे पर महसूस हुआ और उसने सर उठा कर आंसू भरी आंखों से ऊपर देखा, "अमित भैया ?" अमित उसके पड़ोस में रहता था,अक्सर रात को पढ़ाई करने छत पर आता था। "क्या हुआ सनी ? रो क्यूँ रहे हो?" अमित उसके पास बैठते हुए बोला। " कुछ नही अमित भैया, बस नींद नही आ रही थी तो..." "तो.. तो रोना आ गया? हम्म?" अमित ने सवाल किया। सनी ने सर झुका लिया, " बताओ क्या बात है ,मैं जानता हूँ तुम बहुत बहादुर हो यूँही नही रोते ,कोई गहरी बात है तुम्हारे रोने में,बताओ।" अमित सनी से ऐसे ही बात करता ,उसे छोटा भाई समझता और सनी भी अमित को बड़ा भाई मानता था।अमित प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रहा था और सनी को भी पढ़ाता था ताकि बड़ा होकर सनी भी कोई बड़ा अफसर बन जाये। अमित के पूछने पर सनी ने सारी बात उसे बता दी। अमित को बहुत दुख हुआ, उसने कहा - " मेरी ट्यूशन की फीस अभी किसी बच्चे नही दी वरना मैं तुम्हें पैसे देता," अमित कुछ निराश होकर बोला। "अरे नही भैया, आपने इतना बोल दिया बहुत है, में बस इसीलिए दुखी हूं क्योंकि रूमी को उस टिक - टिक वाले बस्ते का बड़ा मन है।" "पता है सनी जब भगवान एक दरवाज़ा बन्द करता है तो हज़ार दरवाजे खोल भी देता है बस तुम्हें उन दरवाज़ों को खोजना है, समझ रहे हो ना ?" सनी ने हैं में सर हिला दिया। अमित भैया से बात करके सनी का भारी मन कुछ हल्का हुआ और वो सोने चला गया।

"क्या करती हो भागवान , कुछ तो सोच लिया करो मुंह खोलने से पहले , " सनी के मामा उसकी मामी को कह रहे थे। " क्यूँ जी ,मैने ऐसा भी क्या कर दिया ? अरे चार सौ रुपये कोई पेड़ पे लगते हैं जो उसे दे देती?" "तुम रहोगी निरी गंवार की गंवार, चार सौ के चक्कर में 40 लाख का नुकसान करना चाहती हो क्या?" मामी कुछ हैरानी से - " हैं ? क्या मतलब ?" सनी का मामा - मतलब ये कि तुम जो उसके मां बाप का पैसा जयदाद दबा के बैठी हो वो क्या मुफ्त में चाहिए तुमको ? सनी का मामा लालची न था वो सनी और रूमी को बहुत प्यार करता था लेकिन घरवाली का डर कई मर्दों को चूहा बना देता है पर आज उसे बहुत बुरा लगा जब सनी की मामी ने ये बताया कि सनी ने तनख्वाह से चार सौ रुपये मांगे और उसने से नही दिए, आज वो सनी को उसके चार सौ दिलाना चाहते थे। उसके पैसों से घर चलाती हो और उसी को आंखे दिखाती हो, भागवान लड़का जवान हो रहा है ऐसा न हो कि चार सौ के चक्कर में उसके बाप की जायदाद और उसकी तनख्वाह से भी हाथ धोना पड़े,मैं ज्यादा कुछ बलूँगा नही तुम आप ही समझदार हो। ये ताना शायद मामी के दिल पर लगा और वो झट से बोली - " सुनो जी , आपको क्या लगता है अब मुझे क्या करना चाहिए?" "मैं क्या जानूँ ," मामा बोले , मामी-"हाँ ,तुम क्या जानो ,आग लगा के किनारे होना तुम्हारी पुरानी आदत है पता है मुझे।" मामा बोले - "कल सनी को पैसे दे देना," "क्या ?" मामी बोली। मामा बोले - " कल सनी को चार सौ रुपये दे देना अगर चाहती हो तुम्हारी ग्रह दशा ठीक रहे तो।

" मामी बेमन से बोली -  "कोई और... "उपाय नही है अब," मामा उसकी बात को काटते हुए बोले। मामी का चेहरा उतर गया, मामा बोले - " अरी भागवान, खुशी से आशीर्वाद की तरह दो ताकि तुमको उसका कुछ पुण्य मिले, देना तो है ही तो रोना कैसा? " अगले दिन सनी और रूमी जब स्कूल को जाने लगे तो सनी सोच रहा था की पैसे कहाँ से आएंगे। तभी मामी ने आवाज़ लगाई " सनी ! ओ सनी !" सनी की तन्द्रा टूटी और बोला - " जी ! आया ,"सनी भागकर मामी के पास गया - " जी!" मामी - " ये ले तुझको चार सौ रुपये चाहिए थे ना ?" सनी अपनी आंखों पर विश्वास न कर सका और एक टक कभी पैसों को कभी मामी को देखता। " ले ना, देख क्या रहा है, मामी हूँ कोई दुश्मन थोड़ी हूँ तुम दोनों की, घर का खर्चा निकलना होता है इसीलिए कलेजे पे पत्थर रख कर ‛न’ कहा था मैंने, मैं बुरी नही हूँ बेटा।" सनी आवाक था। मामी - " ले तेरे चार सौ रुपये," सनी को लगा सपना देख रहा है। " ले ले बेटा , तेरा पैसा है तेरा हक़ है इसपर," पीछे से मामा की आवाज़ सुन सनी चौंका , " ले ले," मामा बोले और सनी की आंखों से आंसू बह निकले, उसने पैसे ले लिए और आंसू छुपाता हुआ बाहर चला गया। आज रूमी का जन्मदिन था और मामी देखावे के लिए ही सही रूमी और सनी का जन्मदिन मनाया करती थी और जबसे मामा ने जायदाद हाथ से निकलने का खतरा दिखाया मामी तो जैसे बदल सी गई आज उसने घर झालर व गुबारों से सजाया था और केक भी बड़ा मंगाया था ।आस पास के बच्चे इक्कठा हो चुके थे सब आगये थे नही आया था तो सनी।
रूमी दरवाज़े पर अपने सनी भैया की राह देख रही थी
 " क्या हुआ रूमी उदास क्यूँ हो?" अमित भैया रूमी से बोले। " सनी भैया अभी तक नही आये," रूमी उदासी से बोली। " लो आ गये तुम्हारे सनी भैया।" अमित ने बाहर की तरफ देखते हुए कहा। रूमी खुशी से सनी की तरफ भागी,  आज सनी के चेहरे पर खुशी की चमक थी । " भैया इतनी देर कहाँ रह गए थे सब मेहमान आ गए ," रूमी बोली। सनी मुस्कुराता हुआ बोला - " तुम्हारे लिए गिफ्ट लेने गया था इसीलिए देर हो गई" और ये कहते ही सनी ने एक गिफ्ट पैक रूमी को दिया । " हैप्पी बर्थडे मेरी प्यारी बहन रूमी"  रूमी चहकते हुए "इसमें क्या है भैया?" "खोलकर देखो" सनी ने कहा।रूमी ने बेसब्री से गिफ्ट पैक खोला और देखते ही उछल पड़ी " मेरा टिक - टिक वाला बस्ता "और सनी को गले लगाते हुए - "थैंक यू भैया।"  रूमी को उसकी खुशी मिली थी आज वो बहुत खुश थी शायद ये जन्मदिन उसका अबतक का सबसे अच्छा जन्मदिन था और सनी के लिए अब तक का सबसे अच्छा दिन।


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