कहानी के बारे में -: दुनिया में गरीब होना आम बात है लेकिन गरीब का संस्कारी होना दूसरी बात है। इस मार्मिक कहानी में यही दर्शाया गया है कि गरीब होना और गरीब सोच होना दोनों में ज़मीन आसमान का फर्क है। इस कहानी में लेखक द्वारा वो मर्मस्पर्शी कथानक प्रस्तुत किया गया है जो अपने आप में ही गरीबी, संस्कार और परवरिश को दर्शाता है। एक गरीब माँ की परवरिश की परीक्षा। यह कहानी एक छोटे से घटनाक्रम को मर्मस्पर्शी भावनात्मक तरीके से प्रस्तुत करती है जो पाठकों के लिए नया तो है किंतु अनभिज्ञ नही क्यूंकि माता - पिता की परिक्षा बच्चों के पैदा होते ही आरम्भ हो जाती है।
बिस्कुट का पैकेट
राजू एक 2 साल का गरीब बच्चा था उसके माता - पिता मजदूरी करते थे और चाहते थे कि राजू बड़ा होकर बहुत बड़ा आदमी बने। राजू हर बच्चे की तरह ही नटखट था वही शैतानियां,वही हुड़दंग और उछलना कूदना करता जो उसकी उम्र के बच्चे करते हैं ,हां, राजू को बिस्कुट बहुत पसंद था और वो भी कोई ऐसा वैसा बिस्कुट नही क्रीम वाला बिस्कुट, लेकिन राजू के माँ बाप दो वक्त की रोटी ही बड़ी मुश्किल से जुटा पाते थे तो राजू के लिए बिस्कुट कहाँ से लाते। कुछ दिनों से राजू के माँ बाप को काम नही मिला और घर की हालत खराब हो गई,थोड़ा बहुत जुगाड़ करके वो राजु को खिला रहे थे लेकिन अब तो उसका भी बंदोबस्त मुश्किल लग रहा था,राजू के पिता काम ढूंढने घर से निकले थे औऱ साँझ हो गई अब तक नही लौटे ,गीता (राजू की माँ) राह तक रही थी और निराशा ने उसके चेहरे को सांवले से काला कर दिया था, उसे पता था कि आज भी काम नही मिला और वो पास ही मिट्टी में खेल रहे राजू को देखकर सोच रही थी कि " आज राजू को क्या खिलाएगी ?" तभी उसे राजू के पिता आते हुए दिखाई दिए, पिता को देख राजू भागकर पिता की गोदी में जा बैठा थका हुआ भूरा (राजू के पिता) गीता से - " थोड़ा पानी पिलाना " गीता ने लोटे में पानी भर भूरा को दिया जिसे भूरा ने बिना सांस लिए पी लिया , तभी राजू बोला - " बाबा मोटर ! मोटर ! " सड़क की तरफ इशारा करके राजू बोला। भूरा - " हाँ बेटा मोटर ,जा खेल बाहर जाकर ," राजू पिता की गोद से उतर कर बाहर खेलने चला गया।
" काम मिला?" गीता भूरा से, " नही, आज भी काम नही मिला लेकिन कल से तुझको काम पर जाना है," भूरा गीता से बोला। कहाँ? गीता ने पूछा, " वो पास ही जो पीले रंग की कोठी है ना, उधर , उनकी नौकरानी शादी में गांव गई है 10 दिन का काम मिला है राजू को भी ले जाना ,बात कर ली है मैंने।" अच्छा! चलो शुक्र है कुछ काम तो मिला, गीता ठंडी आह भररकर बोली। अगली सुबह गीता राजू को लेकर पीली कोठी पहुंची । गेट पर एक हष्ट पुष्ठ महिला ने उससे पूछा - "आ गई ? तू गीता है ना ?"
"जी" गीता बोली, "ये बच्चा तेरा है?" औरत ने पूछा , "जी मेरा ही है।" गीता बोली, "अच्छा ! चल आजा मैं तुझे काम समझा दूँ " गीता को देखकर औरत ने कहा और आगे बढ़ गई। गीता उसके पीछे - पीछे चलने लगी। गीता घर के कामों में निपुण थी इसीलिए उसे कम करने में कोई परेशानी नही हुई बल्कि उसे ये काम मजदूरी के काम से ज्यादा अच्छा लगा, गीता खुश थी कि काम अच्छा मिल गया लेकिन ये चिता भी थी कि 10 दिन बाद क्या होगा। सुबह 7 बजे काम पर जाती और शाम को 7 बजे घर आ जाती ,बस यही ज़िंदगी तो चाहती थी वो की ऐसा कोई काम मिले जिसे करने से वो राजू की भी देखभाल ठीक से कर सके। माँ के साथ राजू को भी वो कोठी पसन्द आ गई थी ,उसे वहाँ खेलने के लिए अच्छी जगह मिल गई थी शायद AC की हवा में खेलने का आनंद उसे ये सुख दे रहा था। अब गीता को काम करते हुए वहां पूरे तीन दिन हो गए थे, मालकिन उसके काम से खुश भी थी। " काश ! मालकिन मुझे काम पर हमेशा के लिए रखले तो कितना अच्छा हो।" गीता बस यही सोचती।
आज काम का 7वां दिन था और गीता ने ये सोच लिया था कि वो मालकिन से उसे काम पर रखने के लिए बात करेगी , "मजूरी का काम भी कोई काम है, आज है कल नही , आज रोटी के साथ दही मिल रही है तो कल आदमी भूखा ही सो रहा है, काम तो कोठी वाला होता है घर के काम करो और हर महीने तनख्वाह हाथ में, दीवाली ,होली पर मिठाई और कपड़े भी मिल जाते हैं।" गीता सोचती। कोठी में शाम का काम करके बरामदा धोने के लिए बाहर आई और अचानक सिहर गई, " क्रीम वाले बिस्कुट " अनायास ही उसके मुंह से निकला मालकिन अपने बच्चे को वही क्रीम वाले बिस्कुट खिलाने की नाकाम कोशिश कर रही थी लेकिन बच्चा बिस्कुट खाने को तैयार नही था शायद उसे वो पसन्द नही थे। गीता की नजरें राजू को खोजने लगीं , राजू अंदर से माँ ,माँ करता आया ,गीता खुश थी कि आज उसके बच्चे को उसकी पसन्द का क्रीम वाला बिस्कुट खाने को मिलेगा पर ये क्या ?? मालकिन ने तो वो बिस्कुट का पैकेट कुत्ते के आगे फेंक दिया । पर कुत्ते का पेट शायद भरा था उसने बिस्कुट के खुले पैकेट को जूठा कर के छोड़ दिया। मालकिन को ये शायद पसन्द नही आया और वो बोली - " दिन लग गए हैं तुझे भी ," फिर उसने राजू की तरफ देखा राजू तरसी आंखों से " क्रीम वाले बिस्कुटों को निहार रहा था,गीता का हलक सूख गया, मालकिन ने राजू को इशारा किया और अपनी तरफ बुलाया ,राजू कभी कुत्ते को कभी बिस्कुट के पैकेट को देख रहा था।
मालकिन राजू को देख कर बोली - राजू! बिस्किट खायेगा ? ये ले इधर आओ जल्दी - जल्दी और राजू मालकिन की तरफ अपने नन्हे कदमों से जाने लगा, गीता को काटो तो खून नही, " क्या राजू ये कुत्ते का जूठा बिस्कुट खायेगा?" गीता ऐसे उस तरफ देखने लगी जैसे उसकी जिंदगी दांव पर लगी हो,जैसे आज ही उसके भविष्य का फैसला होना हो,जैसे आज ही उसे स्वर्ग नर्क मिलना हो।
राजू मालकिन के पास पहुंचा, मालकिन - राजू ,बिस्किट खायेगा ये ले और उसने कुत्ते का छोड़ा हुआ जूठा बिस्कुट का पैकेट राजू को थमा दिया । गीता के चेहरे पे ठंडे पसीने की बूंदे उसके माथे से आंखों की भँवों पर अटक गईं थीं, राजू ने क्रीम वाले बिस्कुटों को देखा फिर गर्दन घूमाकर अपनी माँ को देखा, गीता उस खिलाड़ी की तरह लग रही थी जो जितने की उम्मीद छोड़ चुका हो। राजू ने बिस्कुट को देखा और फिर कुत्ते को देखने लगा और बोला बिचकुट ! बिचकुट! और ये बोलते ही उसने वो बिस्कुट का पैकेट फेंक दिया और बोला छि! छी! बिचकुट, और माँ की तरफ देखकर बोला - " माँ ! छि! छि! बिस्कुट।" गीता की आंखों से आंसू निकल पड़े ,खुशी के आंसू आज उसकी परवरिश हारते - हारते जीत गई थी। उसने राजू को गले लगा लिया और चूमने लगी।
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